बीसवीं सदी के प्रमुख राजनीतिज्ञ और पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना को भारत में हमेशा एक विवादित शख्सियत के रूप में देखा जाता है। भारत का विभाजन करवाकर पाकिस्तान बनवाने के लिए उन्हें जिम्मेदार माना जाता रहा है।
जिन्ना की निजी जिंदगी भी विवादों से अछूती नहीं रही है। मोहम्मद अली जिन्ना का अपने से 24 साल छोटी और 16 साल की रतनबाई उर्फ रूटी पर दिल आ गया था। जब दोनों ने मुंबई में कोर्ट मैरिज की तो पूरे देश में बवाल और नाराजगी जैसे हालात बन गए, क्योंकि लोगों को यह विवाह मान्य नहीं था। रूटी पारसी समुदाय से थी।
दोनों की पहली मुलाकात दार्जीलिंग में हुई थी। मुंबई के नामी उद्योगपति रूटी के पिता सर दिनशा पिटीट जिन्ना के अच्छे दोस्त थे।
मुंबई की गर्मियों से कुछ दिन छुटकारा पाने के लिए रूटी के पिता ने परिवार सहित दार्जीलिंग घूमने का प्लान बनाया और जिन्ना को भी अपने साथ चलने का न्योता दिया। यहीं रूटी जिन्ना को पहली नजर में भा गई।
इससे पहले 16 साल की उम्र में ही जिन्ना का विवाह 14 साल की एमिबाई से हुआ था। विवाह के चंद महीनों बाद ही वह लंदन में पढाई करने चले गए। वहीं रहते हुए उन्हें अपनी पहली बीवी के निधन की जानकारी प्राप्त हुई थी, जो बीमारी में चल बसी थी। इसके बाद उन्होंने प्रण कर लिया था कि अब शादी नहीं करेंगे, लेकिन जिन्दगी को कुछ और मंजूर था।
धीरे-धीरे रूटी-जिन्ना के बीच मेलजोल बढ़ा और दोनों एक-दूसरे के इश्क में गिरफ्तार हो गए। एक दिन जिन्ना ने हिम्मत करके दिनशा से उनकी बेटी रूटी का हाथ मांग लिया। जिन्ना की इस पेशकश से दिनशा गुस्से से बौखला गए। उन्होंने जिन्ना से उसी वक्त अपना घर छोड़ देने के लिए कहा। इसके बाद जिन्ना और दिनशा की दोस्ती का भी अंत हो गया।
रूटी के पिता ने उस पर बंदिशें लगा दी कि वह अब कभी जिन्ना से नहीं मिलेगी, लेकिन प्यार में पड़े ये दो पंछी कहां मानने वाले थे। रूटी ने दो साल का इंतजार किया जब तक वह 18 साल की नहीं हो जाती। वहीं, जिन्ना भी इंतजार करते रहे। इन दो सालों में दोनों ने एक दूसरे को कई खत लिखे।
फिर आखिर वह वक्त आ ही गया जिसका इंतजार दोनों को था। रूटी जैसे ही 18 साल की हुई उन्होंने अपना पिता का घर छोड़ दिया। दोनों का 1918 में बम्बई के जिन्ना हाउस में विवाह हो गया। रूटी के परिवार का कोई भी सदस्य विवाह में शामिल नहीं हुआ। रूटी ने इस्लाम कबूल कर लिया। अब वह मरियम बाई बन चुकी थी।
उनके वैवाहिक जीवन के शुरुआती साल तो खुशनुमा बीते, लेकिन जल्द ही दोनों के रिश्तों में दूरी आनी शुरू हो गई। शादी के अगले ही साल 1919 में रति ने एक बच्ची (दीना) को जन्म दिया। दूसरी तरफ जिन्ना की व्यस्तता और उम्र का फासला दूरियां लाने लगा।
घरेलू विवाद की वजह से रूटी बहुत ज्यादा नशा करने लगी थी। अकेलापन उन्हें सताने लगा था। उन्होंने खुद को ड्रग्स के हवाले कर दिया। उनकी तबियत दिन-ब-दिन बिगड़ने लगी और इलाज के लिए उन्हें लंदन ले जाना पड़ा। इलाज कराकर वापस देश लौटी तो 20 फरवरी 1929 को रूटी ने अपने 30वें जन्मदिवस पर दुनिया को अलविदा कह दिया।
रूटी की अंतिम इच्छा थी कि उनके शव को दफनाने के बजाय उसका दाह संस्कार किया जाए। उन्होंने अपनी इस इच्छा के बारे में अपने एक पारिवारिक मित्र को बताया था। लेकिन जिन्ना ने राजनितिक दवाब के चलते ऐसा नहीं किया और ईश्ना असरी कब्रिस्तान में रूटी के शव को दफना दिया गया। इस तरह एक खूबसूरत आगाज वाली इस प्रेम कहानी का त्रासद अंत हुआ।