राजस्थान के लोक देवता गोगाजी के प्रति हिंदुओं और मुसलमानों, दोनों धर्म के लोगों की अपार श्रधा है।
भगवान गोगाजी का जन्म 900 ईस्वी में चुरू जिले के ददरेवा गाँव में रानी बाछल और राजा जेवर के घर हुआ था। किवदंतियों के अनुसार, रानी बाछल गर्भ धारण नहीं कर पा रहीं थीं। संतान प्राप्ति के सभी यत्न करने के बाद भी उन्हें संतान की प्राप्ति नहीं हो रही थी। तभी उन्हें योगी गोरखनाथ का आशीर्वाद प्राप्त हुआ। योगी ने उन्हें प्रसाद के रूप में अभिमंत्रित गुग्गल फल दिया, जिसके प्रभाव से रानी बाछल को पुत्र की प्राप्ति हुई। इसी के साथ योगी गोरखनाथ द्वारा दिए गए अभिमंत्रित गुग्गल फल के आशीर्वाद से जन्में इस पुत्र का नाम गोगा रखा गया, जो आगे चलकर जाहरवीर गोगाजी के नाम से प्रसिद्द हुए।
गोगाजी का मंदिर राजस्थान के हनुमानगढ़ जिले के गोगामेड़ी शहर में स्थित है। सभी धर्म और सम्प्रदाय के लोग यहां दूर-दूर से मत्था टेकने आते हैं। करीब 950 साल पहले बना यह मंदिर हिंदू और मुस्लिम की मिश्रण वास्तुकला शैली का अद्भूत नमूना है। मुस्लिम समाज उनको जाहर पीर के नाम से पुकारते हैं तथा उक्त स्थान पर मत्था टेकने और मन्नत मांगने आते हैं। इस तरह यह स्थान हिंदू और मुस्लिम एकता का प्रतीक है।
गोगाजी को दिव्य शक्तियों वाले पांच सबसे शक्तिशाली पीरों में माना जाता है। लोग मानते है कि सर्प दंश से प्रभावित व्यक्ति को गोगाजी के स्थल तक लाया जाए तो वह व्यक्ति सर्प विष से मुक्त हो जाता है।
इस मंदिर में एक हिन्दू व एक मुस्लिम पुजारी हैं। मंदिर में घोड़ी पर बैठे हुए गोगाजी की मूर्ति स्थापित है, जिनकी गर्दन पर सांप विराजमान है। आपको बता दे कि गोगाजी को सांपों के देवता के रूप में भी पूजा जाता है।
हर साल अगस्त और सितंबर के सावन महीने के दौरान गोगामेड़ी में वार्षिक मेला आयोजित किया जाता है। यह मेला गोगा नवमी के नौवें दिन से शुरू होता है। भादौ मास की कृष्ण पक्ष की नवमी तिथि गोगा नवमी के नाम से प्रसिद्ध है। इस अवसर पर भगवान गोगाजी के भक्तगण अपने घरों में इष्टदेव की थाड़ी (थान-वेदी) बनाकर अखण्ड ज्योति जागरण करते हैं। ऐसी मान्यता है कि श्रीगोगादेव भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी करते हैं।