कौशाम्बी जिले के हयात उल्लाह संस्कृत के मुस्लिम सिपाही के नाम से भी जाने जाते हैं। हयात उल्ला धर्म से मुस्लिम हैं, लेकिन पिछले 45 सालों से संस्कृत भाषा को जीवित रखने के लिए लड़ाई लड़ रहे हैं। यही नहीं वह हिन्दू धर्म के चारों वेदों में भी पारंगत है। इसी वजह से हयात उल्ला को चतुर्वेदी की उपाधि भी मिली है। यानी उनका पूरा नाम है हयात उल्लाह चतुर्वेदी।
75 की उम्र पार कर चुके हयात उल्लाह मानते हैं कि संस्कृत ही एक ऐसी भाषा है जो मजहब की दीवार तोड़कर एक नए हिंदुस्तान का निर्माण कर सकती है। यही कारण है कि इस उम्र में भी स्कूलों में जाकर बच्चों को पढ़ाते हैं।
हयात उल्लाह वैसे तो 14 साल पहले ही रिटायर हो चुके हैं, लेकिन पढ़ाने का मोह नहीं छूटा और वो भी ऐसा विषय जो आज के अधिकांश युवाओं को शायद ही समझ आए। लेकिन यही विषय यानी संस्कृत उनकी पहचान बन चुका है और आज वह देश के कोने-कोने में जाने जाते हैं। चतुर्वेदी की उपाधि उनको दशकों पहले सम्मान में दी गई थी।
मुस्लिम होने के बावजूद हयात उल्लाह की लगन ने उन्हें संस्कृत भाषा का विद्वान बना दिया। हयात उल्लाह चतुर्वेदी का मानना है कि भाषा का ज्ञान मजहब की दीवार को गिरा देता है और यह आज के समय की बुनियादी जरूरत है। बच्चों के बीच ज्ञान बांटने का ऐसा जज्बा है कि उम्र की लाचारी भी आड़े नहीं आती। छात्र भी उनका बहुत सम्मान करते हैं।
हयात उल्लाह को बचपन से ही संस्कृत से प्रेम रहा है। यही कारण था कि उन्होंने अपनी मास्टर डिग्री भी संस्कृत से की। जिन्दगी के सफ़र की शुरुआत एक शिक्षक के रूप में की। यह सिलसिला रिटायरमेन्ट के बाद भी जारी है। यह शिक्षक आज भी बच्चों में संस्कृत के प्रति दिलचस्पी पैदा कर रहा है।
संस्कृत विषय में उन्होंने कई पुस्तकें भी लिखी हैं। संस्कृत के प्रचार व प्रसार के लिए वह राष्ट्रीय एकता के लिए अमेरिका, नेपाल आदि देशों में सेमिनार भी कर चुके हैं।