वाराणसी को दुनिया का सबसे पुराना शहर बताया जाता है। मान्यता है कि इसे भगवान भोलेनाथ ने खुद बसाया था। लिहाजा इसे शिव की नगरी भी कहते हैं। लेकिन क्या आपको पता है कि ‘शिव की उपनगरी’ किसे कहते हैं? तो हम बता देते हैं कि माउंट आबू शिव की उपनगरी है, जिसे अर्धकाशी भी कहा जाता है।
वैसे तो देशभर में शिव के मंदिर अनेक हैं, जहां शिवजी की मूर्ति या लिंग की पूजा होती है, लेकिन माउंट आबू के अचलेश्वर महादेव मंदिर में ऐसा नहीं है। यहां पर भगवान् शिव के पैर के अंगूठे की पूजा होती है।अचलेश्वर महादेव मंदिर से अनेक मान्यताएं जुड़ी हुई हैं, जिससे यह शिवभक्तों के लिए ख़ास बन जाता है।
मान्यता है कि जिस पर्वत पर यह मन्दिर स्थित है, वह भगवान शिव के अंगूठे की वजह से ही अस्तित्व में है। भगवान शिव का अंगूठा गायब होते ही पर्वत नष्ट हो जाएगा। मन्दिर में भगवान शिव के अंगूठे के नीचे एक प्राकृतिक गड्ढा बना हुआ है। इसमें पानी रहस्यमय तरीके से गायब हो जाता है। बता दें कि मंदिर अचलगढ़ के किले के पास अचलगढ़ की पहाड़ियों पर स्थित है।
अचलेश्वर मंदिर शिल्पकला की दृष्टि से भी बेहद खूबसूरत है। मंदिर परिसर के चौक में चंपा का विशाल पेड़ इसकी शोभा में चार चांद लगाते हैं। मंदिर के प्रांगण में द्वारिकाधीश मंदिर भी बना हुआ है। साथ ही मंदिर के गर्भगृह के बाहर वराह, नृसिंह, वामन, कच्छप, मत्स्य, कृष्ण, राम, परशुराम, बुद्ध व कल्कि अवतारों की काले पत्थर से बनी भव्य मूर्तियां सुशोभित हैं।
माउंट आबू के बारे में प्राचीन मान्यता
यहां प्रचलित कथाओं के मुताबिक, प्राचीन काल में यहां एक ब्रह्म खाई थी, जिसके किनारे वशिष्ठ मुनि का वास था। एक बार उनकी गाय कामधेनु घास चरते हुए ब्रह्म खाई में गिर गई और उसे बचाने के लिए मुनि ने सरस्वती और गंगा का आह्वान किया, जिससे ब्रह्म खाई पानी से भर गई और कामधेनु गाय जमीन पर आ गई। भविष्य में यह घटना दोबारा न हो इसके लिए मुनि ने हिमालय से ब्रह्म खाई को भरने का अनुरोध किया। बाद में इसे आबू पर्वत के नाम से जाना जाने लगा।
इसे अचल बनाने के लिए ऋषि वशिष्ठ के विनम्र अनुरोध पर भगवान शिव ने अपने दाहिने पैर के अंगूठे से इसे अचल कर दिया। इसी वजह से यह क्षेत्र अचलगढ़ के नाम से पहचाना जाता है। भगवान शिव के अंगूठे का महत्व होने की वजह से यहां महादेव के अंगूठे की पूजा की जाती है।
ज्ञात हो कि राजस्थान का माउंट आबू कई जैन मंदिरों के लिए भी प्रसिद्ध है। अचलेश्वर मंदिर में कलात्मक खंभों पर खड़ा धर्मकांटा बना हुआ है, जिसके बारे में कहा जाता है कि यहां के राजा राजसिंहासन पर बैठने के समय अचलेश्वर महादेव से आशीर्वाद प्राप्त करते थे और धर्मकांटे के नीचे बैठकर न्याय की शपथ लेते थे।