Quantcast
Channel: Culture – TopYaps
Viewing all articles
Browse latest Browse all 1635

इन लोगों के लिए ‘टैटू आत्मा का श्रृंगार’है, पहले थी प्रथा अब है फैशन

$
0
0

आज की युवा पीढ़ी में टैटू (गोदना) बनवाने का चलन एक फैशन की तरह है, लेकिन देश का एक राज्य ऐसा भी जहां के आदिवासी लोगों के लिए यह एक प्रथा है। यहां हम बात कर रहे हैं छत्तीसगढ़ के दूर दराज इलाकों में रहने वाले आदिवासियों की। यहां बैगा आदिवासी परिवारों में गोदना प्रथा का विशेष महत्व है। बैगा आदिवासियों की लड़कियों को 12 से 20 साल में गोदना गुदवाना जरूरी होता है। ये उनके रीती रिवाजों का अहम हिस्सा है।

गोदना यानी शरीर पर चलती सूईयां, चेहरे पर झलकता दर्द, लेकिन साथ ही आंखों में संतोष। भले ही पहली नजर में इस दृश्य को देखकर आपको कुछ समझ में न आए, लेकिन यह गोदना है। गोदना यानि आदिवासियों का श्रृंगार।

इस प्रथा के चलन की शुरुआत कब हुई इसका कोई निश्चित प्रमाण तो नहीं है, लेकिन इसके पीछे की जो कहानी बताई जाती है, वह आपको चौंका सकती है।

मान्यता है कि एक राजा बहुत ही कामुक प्रवृति का था। उसे हर रात एक नई लड़की चाहिए होती थी, एक बार जिस लड़की का वह उपभोग कर लेता, उसके शरीर पर गोदने की सूई से निशान बना देता। तब अपनी बेटियों को उस राजा के प्रकोप से बचाने के लिए लड़कियों के परिवारवालों ने उनके शरीर पर गोदने गुदवाने शुरू कर दिए, बाद में मजबूरी में उठाये गए इस कदम ने प्रथा का रूप ले लिया।

इन आदिवासियों का गोदना कोई शहरी फैशन की तरह नहीं है, बल्कि ‘जिन्दगी के साथ भी जिन्दगी के बाद भी’, इस विचार के साथ इसे गोदा जाता है।

मान्यता है कि शरीर पर उभारा गया गोदना मरने के बाद भी शख्स की वास्तविक पहचान होता है। मध्यप्रदेश में बैगा जनजातियों का मानना है कि गोदना या आधुनिक समाज का फैशन टैटू शरीर नहीं, बल्कि आत्मा का श्रृंगार है।

इन आदिवासियों का मानना कि गोदना गुदवाने से मनुष्य को मोक्ष की प्राप्ति होती है। इनमें धारणा प्रचलित है कि मरने के बाद शरीर तो पांच तत्वों में विलीन हो जाता है, लेकिन आत्मा में ये गोदना सदा के लिए अंकित हो जाता है।

बैगा स्त्री गुदना गुदवाने को अपना धर्म मानती हैं। गोदना प्रायः माथे, हाथ, पीठ, जांघ और छाती पर गुदवाया जाता है। ऐसी धारणा है कि गोदना बरसात के महीने में नहीं गुदवाया जाता है, बाकी किसी भी मौसम में गोदना गुदवा सकते हैं।

गोदना एक विशेष प्रकार के स्याही से गोदे जाते हैं। इस स्याही को बनाने के लिए पहले काले तिलों को अच्छी तरह भुना जाता है और फिर उसे लौंदा बनाकर जलाया जाता है। जलने के बाद प्राप्त स्याही जमा कर ली जाती है और इस स्याही से एक विशेष प्रकार की सूई से जिस्मों पर मनचाही आकृति, नाम और चिन्ह गोदे जाते हैं।


Viewing all articles
Browse latest Browse all 1635

Trending Articles